बीजिंग। चीन और अमेरिका के बीच तनातनी जगजाहिर है। दोनों देश अब एक दूसरे के कंसुलेट (वाणिज्यिक दूतावास) को बंद करने की होड़ में हैं। दरअसल, चीन के ह्यूस्टन स्थित कंसुलेट में कागजात और दस्तावेज जलाए जाने की खबर के बाद अमेरिका ने 72 घंटे का समय देते हुए चीन से ऑपरेशन रोकने को कहा था। इसपर बौखलाए चीन ने शुक्रवार को अमेरिका के चेंगडू स्थित कंसुलेट को बंद करने के लिए कह दिया। कुल मिलाकर चीन की यह प्रतिक्रिया जैसे को तैसा वाली लीक पर आधारित दिख रही है।
अपील के साथ दी थी कार्रवाई की चेतावनी
इस हफ्ते की शुरुआत में ह्यूस्टन स्थित कंसुलेट को बंद करने के लिए चीन को 72 घंटे यानि शुक्रवार तक का समय तक दिया गया था। इसने अमेरिका से अपने फैसले पर दोबारा विचार करने की अपील की थी। साथ ही जवाबी कार्रवाई की भी चीन ने चेतावनी दी थी। चीन की ओर से यह भी कहा गया कि वर्तमान में चीनी अमेरिकी संबंध जैसे हैं, हम वैसा नहीं देखना चाहते और इसके लिए अमेरिका जिम्मेदार है। हम एक बार फिर अमेरिका से आग्रह करते हैं कि वो तुरंत अपना यह गलत फैसला वापस ले और दोनों देशों के संबंधों को सामान्य करने के लिए जरूरी स्थिति पैदा करे।' गुरुवार को अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने यहां तक कह दिया कि वाशिंगटन और इसके सहयोगियों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी पर इसका तरीका बदलने के लिए दबाव बनाना होगा ।
दोनों देशों के संबंध होंगे प्रभावित: चीन
चीन ने गुरुवार को कहा कि 'चीनी विदेश मंत्रालय ने चेंगदू में अमेरिकी कंसुलेट के ऑपरेशन को बंद करने को कहा है। चीन ने अमेरिकी कंसुलेट जनरल की ओर से जारी ऑपरेशन पर रोक के लिए कुछ विशेष नियमों को भी लागू करने का फैसला किया है। चीन की ओर से कहा गया , ' ह्यूस्टन में चीनी कंसुलेट को बंद करने का अमेरिका का यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों, अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सामान्य नियम और चीनी-अमेरिकी वाणिज्य समझौते का उल्लंघन है। इससे दोनों देशों के बीच संबंध पर गंभीर असर होगा। चीन की ओर से उठाया गया यह कदम अमेरिका के अनुचित कदम के खिलाफ उचित और आवश्यक है।' इस मामले पर न तो चीन के विदेश मंत्रालय से कोई बयान आया और न ही अमेरिका की ओर से। चीन और अमेरिका के बीच इस साल व्यापार से लेकर तकनीक, कोरोना वायरस, दक्षिण चीन सागर के अलावा हांगकांग समेत कई मुद्दों पर मतभेद जारी है।