इस्लामाबाद। पाकिस्तान में बुधवार देर शाम संसद का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर आतंकवाद से लड़ाई के लिए जरूरी तीन विधेयक पारित करा लिए गए। अक्टूबर में पेरिस में होने वाली एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में डाले जाने पर विचार होना है। ऐसे में पाकिस्तान दिखावे के तौर पर कोई भी ऐसा दांव नहीं छोड़ रहा जिससे लगे कि वह आतंकवाद के खात्मे के लिए गंभीर नहीं है। इमरान ने इसे कदम को बेहद जरूरी बताया...
इमरान बोले, बर्बाद हो जाएगी अर्थव्यवस्था
संसद में प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा, पाकिस्तान को एफएटीएफ की ब्लैक लिस्ट में जाने से बचाने के लिए इन विधेयकों का संसद से पारित होना जरूरी था। अगर पाकिस्तान ब्लैक लिस्ट में चला जाता है तो देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी। इससे पहले दिन में आतंकवाद निरोधी कानून (संशोधित) विधेयक 2020 पाकिस्तानी संसद के निचले सदन से पारित होकर उच्च सदन सीनेट में पहुंचा लेकिन विपक्षी दलों के बहुमत वाले इस सदन ने उसे अस्वीकार कर दिया था।
समर्थन में 31 वोट
विधेयक के समर्थन में 31 वोट पड़े जबकि विरोध में 34 वोट पड़े। इस विधेयक के प्रावधानों के अनुसार अदालत की अनुमति लेकर जांच अधिकारी आतंकवाद के लिए मिलने वाले धन का स्त्रोत तलाशने, मोबाइल-टेलीफोन-इंटरनेट पर होने वाली बातचीत को खंगालने और कंप्यूटर इत्यादि की जांच कर सकेगा। यह जांच कार्य 60 दिन में पूरा करना होगा। विधेयक में सरकार ने माना है कि आतंकी संगठनों को मिलने वाले धन की वजह से देश के विकास में रुकावट आ रही है।
आतंकी पाकिस्तान के लिए खतरा
सरकार ने माना कि इस धन से पलने वाले आतंकी न केवल पाकिस्तान की आतंरिक शांति के लिए खतरा हैं बल्कि इनके कारण सहयोगी देश भी परेशान रहते हैं। एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) के दिशानिर्देश लागू करने के लिए नया कानून बनाने के वास्ते पेश हुआ यह तीसरा विधेयक सीनेट ने रोका था। अगस्त में एंटी मनी लांड्रिंग (दूसरा संशोधन) विधेयक और इस्लामाबाद राजधानी क्षेत्र वक्फ संपत्ति विधेयक भी सीनेट ने अस्वीकार कर दिए थे।
आनन फानन में बुलाया संयुक्त अधिवेशन
विपक्ष के असहयोग से निपटने के लिए सरकार ने शाम को राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के पास संसद का संयुक्त अधिवेशन आहूत करने के लिए प्रस्ताव भेजा, जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद बुधवार को और उससे पहले अगस्त में सीनेट के अस्वीकार किए तीनों विधेयक पारित करा लिए गए। विपक्ष ने इस दौरान कई संशोधन पेश किए लेकिन वे अस्वीकार कर दिए गए। इससे नाराज विपक्ष ने संयुक्त अधिवेशन का बहिष्कार कर दिया। इससे सरकार को विधेयक पारित कराने में और आसानी हो गई।